Judge Kaustubh Khera, 27 मई 2025: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज कौस्तुभ खेड़ा की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है. खेड़ा पर आरोप था कि उन्होंने वकीलों और पुलिसकर्मियों को माफी मांगने के लिए सार्वजनिक रूप से उठक-बैठक करने और कान पकड़ने को कहा था. यह मामला अदालत की गरिमा से जुड़ा हुआ था और न्यायपालिका की मर्यादा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा था.
7 मई को दिए गए फैसले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एस.के. कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि कौस्तुभ खेड़ा को उनके असंतोषजनक कार्य प्रदर्शन के चलते हटाया गया. कोर्ट ने कहा कि यह एक सामान्य बर्खास्तगी थी, जिसमें कोई अनुशासनात्मक या दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई थी. फुल कोर्ट द्वारा प्रस्ताव पारित कर यह निर्णय लिया गया था.
कोर्ट की टिप्पणी और कानूनी स्थिति
खंडपीठ ने यह भी कहा कि यदि किसी अधिकारी के आचरण और प्रदर्शन के आधार पर यह तय किया जाता है कि वह नौकरी के लिए उपयुक्त नहीं है, तो यह फैसला विभागीय अधिकारियों की विवेकाधीन शक्ति के अंतर्गत आता है. इस तरह के मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता, जब तक कि कोई स्पष्ट कदाचार सामने न आए.
Judge Kaustubh Khera की आपत्ति और RTI आवेदन
सिविल जज खेड़ा ने अपनी बर्खास्तगी के पीछे के कारण जानने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) के तहत आवेदन दायर किया था. जानकारी मिलने पर उन्होंने तर्क दिया कि यदि यह अनुशासनात्मक कार्रवाई थी, तो उन्हें नोटिस भेजा जाना चाहिए था और उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए था.
हालांकि, हाई कोर्ट ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कार्य प्रदर्शन के आधार पर की गई बर्खास्तगी को अनुशासनात्मक कार्रवाई के समान नहीं माना जा सकता. कोर्ट के अनुसार, “किसी को दंड देना और यह तय करना कि कोई व्यक्ति नौकरी के लिए उपयुक्त है या नहीं – ये दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं.”
हाई कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि न्यायिक सेवा में रहते हुए गरिमा और मर्यादा का पालन अनिवार्य है. कौस्तुभ खेड़ा की बर्खास्तगी को महज कार्यप्रणाली से जुड़ा निर्णय माना गया है, जिसमें किसी तरह की सजा देने की मंशा नहीं थी.