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सर्वदलीय सांसद दलों में MP की अनदेखी, उमंग सिंघार ने उठाए सवाल

All Party Delegation Members
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All Party Delegation Members, 22 मई 2025: भारत ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसके बाद उसने अपने आतंकवाद विरोधी रुख पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने और पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए एक बड़ी कूटनीतिक पहल शुरू की है. इस पहल के तहत, भारत सरकार ने 32 देशों और यूरोपीय संघ के मुख्यालय में भारत का पक्ष रखने और पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद पर एकजुट राष्ट्रीय रुख प्रस्तुत करने के लिए सात सर्वदलीय सांसद दलों का गठन किया है.

इन दलों में विभिन्न राजनीतिक दलों—जैसे भाजपा, कांग्रेस, डीएमके, एनसीपी—के 59 सांसद शामिल हैं, जिनका नेतृत्व प्रमुख नेताओं जैसे बैजयंत पांडा, रवि शंकर प्रसाद, संजय कुमार झा, श्रीकांत एकनाथ शिंदे, शशि थरूर, कनिमोझी करुणानिधि, और सुप्रिया सुले कर रहे हैं. ये दल 23 मई, 2025 से अपनी यात्रा शुरू करेंगे.

All Party Delegation Members: उमंग सिंघार की आलोचना

मध्य प्रदेश विधानसभा मे नेताप्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इस फैसले पर गंभीर आपत्ति जताई है. उन्होंने X पोस्ट में कहा कि इन दलों में मध्य प्रदेश के 29 लोकसभा सांसदों में से किसी को भी शामिल नहीं किया गया है, जिसे उन्होंने राज्य और उसकी जनता के प्रति अपमानजनक बताया.

उन्होंने लिखा, “ये तो MP के सांसदों को रिजेक्ट करने जैसी बात हुई !!! मोदी सरकार ने दुनिया के देशों को #OperationSindoor की वास्तविकता बताने और #Pakistan की झूठ की असलियत दिखाने के लिए सांसदों की टीम गठित की. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, इस टीम में #MP के 29 में से एक भी सांसद नहीं है. इसका मतलब यह है कि हमारे प्रदेश के सांसदों को भाजपा इस योग्य नहीं समझती. यह न केवल सांसदों बल्कि उन लोगों का भी अपमान है, जिन्होंने 29 में से सभी सीटों पर #BJP को जिताया.”

मध्य प्रदेश में 29 लोकसभा सीटें हैं, जिन पर 2024 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था.

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सर्वदलीय दलों की संरचना और राजनीतिक विवाद

All Party Delegation Members, इन सात दलों में 59 सांसद शामिल हैं, जिनमें 31 सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से और 20 अन्य दलों से हैं. इनका नेतृत्व अनुभवी सांसद कर रहे हैं, और प्रत्येक दल में एक सेवानिवृत्त राजनयिक भी शामिल है.

उमंग सिंघार की आलोचना न केवल केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और सम्मान जैसे मुद्दे भारतीय राजनीति में कितने संवेदनशील हो सकते हैं.

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