---Advertisement---

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: एक नया कदम या विवादों का पिटारा?

---Advertisement---

क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में मस्जिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों जैसी संपत्तियों का प्रबंधन कैसे होता है? ये संपत्तियां, जिन्हें वक्फ कहा जाता है, धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित होती हैं। लेकिन इनके प्रबंधन में लंबे समय से भ्रष्टाचार, अतिक्रमण और पारदर्शिता की कमी जैसी समस्याएं बनी हुई हैं।

वक्फ

इन समस्याओं को सुलझाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 लागू किया है, जो 8 अप्रैल 2025 से प्रभावी हो गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कानून वक्फ संपत्तियों के लिए एक उज्जवल भविष्य की ओर कदम है, या फिर यह एक नया विवादों का पिटारा बन गया है? आइए, गहराई से समझते हैं।

वक्फ क्या है?

वक्फ एक इस्लामी परंपरा है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति—जैसे ज़मीन, इमारत या अन्य संसाधन—को धार्मिक, सामाजिक या दान के उद्देश्य से स्थायी रूप से समर्पित कर देता है। इसे मुशरूत-उल-खिदमत कहा जाता है, और दान करने वाले को वाकिफ

भारत में वक्फ संपत्तियां मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों, स्कूलों और अस्पतालों के रूप में मौजूद हैं। इनका प्रबंधन वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है।

वर्तमान में, वक्फ संपत्तियों की अनुमानित कीमत ₹1.2 लाख करोड़ है, और ये करीब 9.4 लाख एकड़ में फैली हुई हैं। यह भारत में रेलवे और सशस्त्र बलों के बाद तीसरा सबसे बड़ा संपत्ति धारक है। हालांकि, इनका प्रबंधन कई बार विवादों में घिरा रहा है—जैसे कर्नाटक वक्फ भूमि घोटाला।

नया कानून वक्फ क्यों लाया गया?

मान लीजिए, किसी गांव में एक पुरानी मस्जिद है, जिसकी ज़मीन Waqf के तहत आती है। लेकिन न तो उसकी सीमाओं का स्पष्ट विवरण है, न ही उसका राजस्व और न ही यह पता है कि उसका प्रबंधन कौन कर रहा है। ऐसी स्थिति देश भर में आम है।

साल 2006 में डॉ. सैयद जफर महमूद की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने वक्फ संपत्तियों की स्थिति की समीक्षा की और कई खामियों को उजागर किया—जैसे राजस्व की अपूर्ण वसूली, अतिक्रमण, खराब रखरखाव, लंबित कानूनी मामले, और सर्वेक्षण में पारदर्शिता की कमी।

इन्हीं सिफारिशों के आधार पर सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 लागू किया। इसे यूनाइटेड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट” यानी UWMEED एक्ट के नाम से भी जाना जाता है।

नए अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

प्रावधानविवरण
वक्फ कागठनकेवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है, जो कम से कम पाँच वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो और संपत्ति का वैध मालिक हो। जब तक किसी संपत्ति को औपचारिक रूप से वक्फ नहीं बनाया गया हो.
सर्वेक्षण की जिम्मेदारीपहले यह कार्य सर्वे आयुक्त करते थे, अब यह जिला कलेक्टर को सौंपा गया है, जिससे पारदर्शिता बढ़ाने की उम्मीद है।
सरकारी संपत्ति पर स्पष्टतायदि कोई संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा।   कलेक्टर उसका अंतिम स्वामित्व तय करेगा।
केंद्रीय वक्फ परिषदइसमें अब दो गैर-मुस्लिम और दो महिला सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होगी।
राज्य वक्फ बोर्डबोर्ड में गैर-मुस्लिम, शिया-सुन्नी समुदायों के प्रतिनिधि, पिछड़े वर्ग के मुस्लिम और दो महिलाएं शामिल होंगी।
अपील की व्यवस्थाअब ट्रिब्यूनल के निर्णयों को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। संपत्ति मालिक अब राजस्व न्यायालय, सिविल कोर्ट या अन्य उपयुक्त अदालतों में भी अपील कर सकते हैं।

विवाद और चिंताएं

नया कानून लागू होते ही विरोध की आवाज़ें उठने लगीं। मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग इसे धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप मान रहा है। खासतौर पर वक्फ बाय यूज़र” की अवधारणा को हटाने से ऐतिहासिक मस्जिदों और कब्रिस्तानों की वैधता पर सवाल उठे हैं, क्योंकि इनके पास अक्सर दस्तावेज नहीं होते।

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस कानून को अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला बताया। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसक प्रदर्शन भी हुए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए फिलहाल निर्देश दिया है कि पहले से घोषित संपत्तियों को पुनर्निर्धारित न किया जाए।

साथ ही, कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या हिंदू ट्रस्टों में मुस्लिमों को शामिल किया जाएगा, जिससे इस कानून की निष्पक्षता पर बहस छिड़ गई है।

भविष्य की दिशा

नया अधिनियम प्रबंधन को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी बनाने की दिशा में एक प्रयास है। डिजिटल रिकॉर्ड, सर्वेक्षण की जिम्मेदारी में बदलाव और अपील की सुविधा जैसे कदम सकारात्मक हैं। साथ ही, महिलाओं को प्रतिनिधित्व देना भी सराहनीय है।

हालांकि, कुछ प्रावधान—जैसे गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्य उपस्थिति और ‘वक्फ बाय यूज़र’ का निष्कासन—समुदाय में असंतोष की वजह बन रहे हैं। चूंकि भूमि राज्य का विषय है, इसलिए इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि राज्य सरकारें इसे कितनी कुशलता से लागू करती हैं।

फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधानिकता पर सुनवाई जारी है, जो इस कानून की अंतिम दिशा तय करेगी।

Join WhatsApp

Join Now
---Advertisement---

Leave a Comment