भोपाल, 26 मार्च 2026: मध्य प्रदेश में पराली जलाने का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। बीते 50 दिन, यानी 5 मार्च से 24 अप्रैल 2025 तक, प्रदेश में 34,164 बार किसानों ने खेतों में पराली को आग के हवाले किया। सरकार ने अब सख्ती बरतते हुए कहा है कि पराली जलाने वाले किसानों को न तो मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि मिलेगी, न ही उनकी फसल MSP पर खरीदी जाएगी। लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ सख्ती से ये मसला हल हो पाएगा? चलिए, इस पूरे मामले की तह तक जाते हैं।
कहां सबसे ज्यादा Stubble Burning?
नर्मदापुरम जिला पराली जलाने के मामले में सबसे आगे चल रहा है। यहां 50 दिनों में 5,784 बार पराली को आग लगाई गई। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का संसदीय क्षेत्र विदिशा भी इस मामले में पीछे नहीं है, जहां 3,907 घटनाएं दर्ज हुईं। सीहोर में 2,646 बार और रायसेन में 2,229 बार पराली जलाने की घटनाएं सामने आईं। भिंड जिले में 1,964, हरदा में 1,519 और होशंगाबाद में 1,355 मामले दर्ज हुए। अन्य जिलों में भी पराली जलाने की घटनाएं कम नहीं हैं, जैसे छतरपुर में 263, रतलाम में 243, कटनी में 224 और खंडवा में 204 मामले सामने आए। कुल मिलाकर, इन 50 दिनों में 34,164 बार पराली जलाने की घटनाएं हुईं।
ऊपर दिए गए आंकड़े 5 मार्च से 24 अप्रैल 2025 तक का है
सैटेलाइट की नजर, फिर भी क्यों नहीं रुक रही Stubble Burning?
पराली जलाने की हर हरकत को सैटेलाइट पकड़ लेता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) सैटेलाइट से उन खेतों की तस्वीरें लेता है जहां आग की लपटें दिखती हैं। इन तस्वीरों में गांव, तहसील, जिला और लोकेशन की पूरी डिटेल होती है। ये जानकारी मध्य प्रदेश के कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय को भेजी जाती है।
वहां से डेटा जिला कलेक्टर और कृषि विभाग के अफसरों तक पहुंचता है। फिर राजस्व वाले गांवों में जाकर चेक करते हैं कि किस किसान ने पराली जलाई। पकड़े जाने पर FIR होती है और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों के हिसाब से जुर्माना भी ठोंका जाता है।
पराली रोकने के लिए क्या कर रही सरकार?
पिछले कुछ सालों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं। इसे रोकने के लिए कृषि विभाग कई तरह के यंत्रों को बढ़ावा दे रहा है। जैसे हैप्पी सीडर ओर सुपर सीडर ये पराली को मिट्टी में मिला देते हैं। किसान गर्मियों में खेत खाली हों तो गहरी जुताई से पराली मिट्टी में दबकर खाद बन जाती है। इससे मिट्टी भी बेहतर होती है। स्ट्रॉ रीपर मशीन के जरिए हार्वेस्टर के बाद बचे डंठल को पशुओं के चारे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
कृषि विभाग का दावा है कि वो किसानों को इन यंत्रों के बारे में बता रहा है। लेकिन हकीकत में कितने किसान इनका इस्तेमाल कर रहे हैं, ये बड़ा सवाल है।
पराली के ढेर को जलाने के बजाय उससे कमाई का रास्ता भी खुल सकता है। मध्य प्रदेश में कंप्रेस्ड बायोगैस (CBG) प्लांट लगाए जा रहे हैं। इनमें धान की पराली से गैस बनेगी, जिससे किसानों को कुछ पैसे मिल सकते हैं।
क्या सरकार की सख्ती और नए उपाय इस आग को रोक पाएंगे, या ये सब बस कागजों तक सिमटकर रह जाएगा? ये वक्त बताएगा।