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न्याय को समोसे में तौला! जांच अधिकारी ने 6 समोसों में दबाया रेप केस, कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट को किया खारिज

Bribe of 6 samosas
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Bribe of 6 samosas: 1july2025: उत्तर प्रदेश के एटा जिले से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, जलेसर थाना क्षेत्र में 14 वर्षीय नाबालिग से रेप के मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने कथित रूप से सिर्फ 6 समोसे की रिश्वत लेकर मामले को कमजोर कर दिया, जांच में लापरवाही इतनी थी कि न तो चश्मदीदों के बयान दर्ज किए गए और न ही पीड़िता की गवाही को महत्व दिया गया, इसके आधार पर पुलिस ने “सबूतों की कमी” बताते हुए कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट  दाखिल कर दी.

जांच के बाद भी लापरवाही

इससे पहले 31 अगस्त 2024 को भी कोर्ट ने केस में दोबारा जांच के आदेश दिए थे, लेकिन पुलिस ने दोबारा वही फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, जिसमें किसी भी गवाह या पीड़िता के बयान का उल्लेख नहीं था.

Bribe of 6 samosas: कोर्ट ने रिपोर्ट को बताया मज़ाक

विशेष पॉक्सो कोर्ट के जज नरेंद्र पाल राणा ने इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया ,27 जून 2025 को आए फैसले में कोर्ट ने इसे “न्याय व्यवस्था के साथ किया गया मखौल” करार दिया और पूरे मामले को प्राइवेट कंप्लेंट के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया, कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी ने स्पष्ट रूप से केस को दबाने की मंशा से काम किया और रिश्वत लेकर आरोपी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की.

पुलिस ने किया था FIR से भी इनकार

पीड़िता के पिता और भाई ने पुलिस की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि थाना पुलिस ने शुरुआत में FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया था, परिवार ने कोर्ट का रुख किया, तब जाकर केस दर्ज हुआ। भाई की आपत्ति पर कोर्ट ने केस को दोबारा खोलने के निर्देश दिए थे.

Bribe of 6 samosas: पुलिस की छवि पर गंभीर धब्बा

इस मामले ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा कर दिया है, कोर्ट ने जहां जांच में लापरवाही और पक्षपात को उजागर किया, वहीं अभी तक उस जांच अधिकारी पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गई है, अब केस परिवाद के रूप में आगे बढ़ेगा, यानी परिवार खुद कोर्ट में गवाहों और सबूतों को पेश करेगा.

न्याय की कीमत केवल समोसे?

यह मामला न सिर्फ कानून व्यवस्था के पतन को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि गरीब और कमजोर वर्गों की न्याय तक पहुंच आज भी कितनी कठिन है, जब न्याय को चंद समोसों में खरीदा जा सकता है, तब समाज को अपने नैतिक और कानूनी ढांचे पर गंभीर मंथन करने की जरूरत है.

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