Infant mortality rate: 30 जून 2025: मध्यप्रदेश में नवजातों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है, देशभर में सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर के मामले इसी राज्य से सामने आ रहे हैं, भारत सरकार के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में हर 1,000 नवजातों में से 40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं देख पाते, यह आंकड़ा राज्य को देश में सबसे खराब स्थिति वाले राज्यों में ला खड़ा करता है.
स्वास्थ्य सेवाओं में 10,000 करोड़ खर्च
हैरानी की बात यह है कि बीते 5 वर्षों में राज्य सरकार ने मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं पर 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं, इसके बावजूद नतीजे बेहद निराशाजनक हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली, डॉक्टरों की भारी कमी और पुराने सिस्टम की वजह से यह संकट और गहराता जा रहा है.
Infant mortality rate: ये हैं प्रमुख कारण
1. सीजेरियन की सुविधा बेहद सीमित
राज्य के कुल 547 अस्पतालों में से केवल 120 में ही सीजेरियन डिलीवरी की सुविधा मौजूद है, इनमें भी कई जगह यह सेवा 24 घंटे उपलब्ध नहीं है, आलीराजपुर, अशोकनगर, श्योपुर जैसे जिलों में यह सुविधा 1-2 अस्पतालों तक ही सीमित है.
2. एसएनसीयू में भी नहीं बच पाए नवजात
राज्य की 62 विशेष नवजात देखभाल इकाइयों (SNCU) में सालभर में 9,760 बच्चों की मौत हुई। उदाहरण के तौर पर, गुना जिले में 6,550 डिलीवरी में से 2,643 बच्चों को SNCU में भर्ती किया गया, जिनमें से 442 की मौत हो गई, इनमें से 55% बच्चे रेफर होकर आए थे.
3. कुपोषण और एनीमिया की मार
कई महिलाएं गर्भधारण से पहले ही एनीमिक होती हैं, नतीजा यह होता है कि नवजात या तो समय से पहले जन्म लेते हैं या बहुत कम वजन के साथ पैदा होते हैं, जिससे उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है.
4. पुरानी व्यवस्था में इलाज
SNCU आज भी पुराने चिकित्सा प्रोटोकॉल पर चल रहे हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि पैरेंटल साइंस जैसे नए कॉन्सेप्ट को अपनाकर गर्भावस्था से लेकर नवजात देखभाल तक की जिम्मेदारी एकीकृत विभाग को दी जानी चाहिए.
Infant mortality rate: सियासी बवाल और प्रतिक्रियाएं
इस रिपोर्ट ने प्रदेश की राजनीति में तूफान ला दिया है। कांग्रेस और महिला संगठनों ने इसे राज्य सरकार की विफलता करार दिया है, महिला कांग्रेस ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा “डबल इंजन सरकार होने के बावजूद मप्र आज भी देश में IMR में अव्वल है। 10,000 करोड़ खर्च के बाद भी परिणाम शून्य हैं.
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस पर चिंता जताई है और स्वास्थ्य अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे तत्काल सुधारात्मक कदम उठाएं, उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने एक हालिया कार्यक्रम में माना कि कुछ क्षेत्रों में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन अब भी लंबा सफर तय करना बाकी है.
सिस्टम की असल खामियां
गांवों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी, विशेषज्ञ डॉक्टरों का अभाव और आपातकालीन सेवाओं का सीमित दायरा इस संकट को और गंभीर बना रहा है। साथ ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की शिकायतें भी स्थिति को और बिगाड़ती हैं।