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संसद बनाम सुप्रीम कोर्ट: कौन है असली बॉस?

संसद बनाम सुप्रीम कोर्ट
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संसद बनाम सुप्रीम कोर्ट भारत में इन दिनों एक अहम बहस चल रही है — क्या संसद देश की सबसे बड़ी ताकत है या सुप्रीम कोर्ट? इस विवाद की शुरुआत हुई जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए और कहा कि संसद सबसे बड़ी संस्था है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल और राष्ट्रपति को लेकर सख्त निर्देश दिए, जिससे बहस और तेज हो गई।

संसद बनाम सुप्रीम कोर्ट

संसद बनाम सुप्रीम कोर्ट कैसे शुरू हुआ मामला?

8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया, जिसमें तमिलनाडु सरकार द्वारा पास किए गए बिलों को राज्यपाल द्वारा लटकाए जाने पर नाराजगी जताई गई।
कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को किसी भी बिल पर एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा। अगर वो बिल राष्ट्रपति को भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को भी तीन महीने के भीतर निर्णय देना होगा। इस आदेश के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई।

उपराष्ट्रपति और सांसद क्यों भड़के?

जगदीप धनखड़ ने कहा कि “संसद ही सर्वोच्च है, उसके ऊपर कोई नहीं। सुप्रीम कोर्ट खुद को ‘सुपर संसद’ समझ रहा है।”
निशिकांत दुबे ने कोर्ट पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “राष्ट्रपति, चीफ जस्टिस को नियुक्त करते हैं, तो कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश कैसे दे सकता है?” धनखड़ ने 1977 के आपातकाल का उदाहरण देकर कहा कि “जनता ने उस समय भी लोकतंत्र की रक्षा की थी और अब भी संसद को सबसे ऊपर मानना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट की ताकत: अनुच्छेद 142

सुप्रीम कोर्ट के पास संविधान का एक अहम हथियार है — अनुच्छेद 142। यह कोर्ट को “पूर्ण न्याय” करने का अधिकार देता है, यानी जब कोई स्पष्ट कानून न हो, तब भी कोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है जो न्यायसंगत हो। इस अनुच्छेद का इस्तेमाल कोर्ट ने अयोध्या केस, सहारा-सेबी विवाद, जैसे मामलों में किया है।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल का कहना है, देश में अगर किसी संस्था पर भरोसा बचा है, तो वो सुप्रीम कोर्ट है। अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश दे सकता है, क्योंकि राष्ट्रपति सिर्फ प्रतीकात्मक पद है और कैबिनेट की सलाह पर काम करते हैं।”

संविधान विशेषज्ञ विराग गुप्ता कहते हैं, भारत में संविधान सबसे ऊपर है, न कि संसद। हां, कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार हैं, लेकिन वो कार्यपालिका की भूमिका नहीं निभा सकता।”

क्या अनुच्छेद 142 हटाया जा सकता है?

सरकार चाहे तो अनुच्छेद 142 को हटाने की कोशिश कर सकती है, लेकिन यह संविधान के बुनियादी ढांचे (basic structure) का हिस्सा है।
कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि संविधान के मूल ढांचे से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।

हां, इसकी सीमा या व्याख्या को और स्पष्ट किया जा सकता है ताकि भविष्य में ऐसे टकराव न हों।

असली बॉस कौन?

  • भारत में संसद, राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट — तीनों ही संविधान के अधीन हैं।
  • ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च मानी जाती है, लेकिन भारत में संविधान सबसे ऊपर है।
  • यह टकराव केवल संस्थाओं का नहीं, बल्कि लोकतंत्र के संतुलन का है।
  • क्या सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्ति का सही उपयोग कर रहा है, या फिर संसद संविधान की आड़ में अधिक शक्ति चाहती है — इस सवाल का जवाब भविष्य की सुनवाई और फैसले तय करेंगे।
  • लेकिन एक बात साफ है: भारत का संविधान ही असली बॉस है।

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